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Wednesday, January 10, 2024

अंधेरा

भागिरथी नदी से मिलती एक छोटी नदी जिस पर  थोड़ी थोड़ी दूर के फासले  पर तीन चार पन चक्कियां बनी थी ,जमाना पुराना था गांव में बिजली थी नही इस लिए बिजली की चक्कियां भी नही होती थी  ।
जिनकी ये चक्कियां होती थी , उनके घर के एक सदस्य को वहां हर समय  पिसाई का काम देखना होता था , उस जमाने मे पिसाई के बदले चक्की वाला थोड़ा आटा रख लेता था ,बहुत कम लोग पैसों का लेंन देंन करते थे  ।
सरजू ने  अबकी बार जब पिसाई का समय आया तो दादा जी को कहा कि वह पनचक्की पर खुद जाना चाहता है ,और काम धाम ज्यादा नही है , तब दादा जी ने उसे बहुत समझाया  कि तेरे बस का नहीं है वहां ,रात में डर जाएगा ,पर सरजू ने जिद्द न छोड़ी और अपने आपको निडर साबित करके ही दम लिया ,और अगले दिन तैयार हो गया ,यूँ सरजू कई बार अपने दादा जी के साथ पनचक्की पर गया था ।
जरूरी सामान लेकर  सुबह सरजू नदी की तरफ चल पड़ा , इन दिनों गेंहू की फसल के समय  पिसाई का काम तेजी से चल रहा था ,सो तीन चार दिन रात में वहां रुकना पड़ जाता था , दो और पन चक्कियां भी थी पर वो भी व्यस्त रहती थी ।
सरजू  दिन भर लोगोँ  के गेंहू पीसता और बदले  में जो पिसाई होती उसे थैले में भर लेता था ,उस दिन उसे पिसाई करते करते शाम के सात बजे गए ,यह वह समय था जब गांव वापस जाने का अर्थ था जंगल का ऊबड़खाबड़ रास्ता पार कर  गांव रात नौ बजे पहुंचना अर्थात वह वहीं पर रुक गया , जब पिसाई ही गई तो सुरजु चक्की के उपर गया और  पनचक्की की तरफ आने वाले पानी के बहाव को लकड़ी का फट्टा लगा कर बहाव दूसरी तरफ कर दिया हटा ,  बहाव दूसरी होने से पनचक्की रुक गई ,और सूरज वापस नीचे आकर खाने का जुगाड़ देखने लगा ।
दो तीन बर्तन इस काम के किये वहां पर रखे जाते थे ,उसने अपने लिए आते की दो मोटी रोटियां बनाई और शब्जी बना कर खा पी कर आराम करने लगा ।
कुछ देर लेटने पर उसे नींद आने लगी , तभी उसे लगा कि कोई उसे झकझोर रहा है ,वह हड़बड़ा कर उठ बैठा , उसने देखा तो आसपास कोई नही था , वहम समझ कर वह दोबारा लेटकर सोने की कोशिश करने लगा , आधी नींद में उसे ऐसा लग जैसे किसी ने उसकी चद्दर जोर से खींची हो ,इस बार वह डर गया और उठ कर बैठ गया ,और सोचने लगा कौन होगा  , ऐसा तो उसने अपनी बीस बरस के जीवन मे कभी  महसूस नहीं किया ।
तभी उसे  नदी के पानी का पत्थरों से टकराने के स्वर के बीच एक अजीब तरह का स्वर सुनाई पडा ,जैसे कोई दोतीन औरतें आपस  में सुबक  सुबक कर रो रही हो ,और फिर  छप्प की आवाज हुई जैसे कोई पानी मे छलांग लगाता है , है भगवान यह क्या मुसीबत है , वह उठकर खड़ा हो गया और इधर उधर देखने लगा सात्मने थोड़ी दूर पर भागिरथी नदी थी वह जगह साफ दिक्ख रही थी जहां यह छोटी नदी भागिरथी से मिलती थी ।
सरजू बीस साल का नवयुवक था , अपनी जिज्ञासा को रोक नही पाया और धीरे से किनारे की तरफ से उस ओर जाने लगा , सरजू जब काफी दूर आगया तो सामने उसे भागिरथी नदी दिखाई देने लगी , जहां उसने छप्प की आवाज सुनी थी वहां पर उसे सिवाय नदी की गड़गड़ाहट के सिवाय कुछ नही था , तभी अचानक उसके कानों में किसी महिला की खिल ख़िलाहट सुनाई पड़ी ,वह चौंका , इस समय यहां  कोई कैसे हो सकता है , और क्यों होगा , वह  किसी अनहोनी की आशंका से घबता गया , उसने इधर उधर देखा  ,पर उसे कोई नही दिखाई दिखा , तभी उसे सात्मने की तरफ नदी के इस पार बड़ी चट्टानों पर एक दो नही तीन परछाई जैसी नजर आई , वह स्पष्ट तो आवाज नही सुन पाया मगर ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह तीनों आपस मे बातें कर रही हो । अब सरजू के हाथ पैर ठंडे पड़ गए , लोग भूत प्रेत की बात करते थे , सरजू ने कभी विश्वास  नही किया ,  डरपोक कह कर वह उनका मजाक उड़ाता था , आज वो सब बातें उसे रह रह  कर याद आ रही थी जिन्हें वह अक्सर झुठला दिया करता था , अब उसके पैर वहीं जड़वत हो गए थे , वह तीनो साये उससे लगभग पचीस फुट की दूरी पर थे  । वह जैसे ही पलट कर भागने को हुआ तभी धड़ाम से एक बडा पेड  नीचे गिरा , वह समझ गया  , बेटा अब तो आज्ञा हो गई कि वापस जाने की सोचना भी मत ,वह मन मे सोचने लगा  ।
क्या बुरा वक्त था जब वह पनचक्की छोड़ कर यहां चला आया ,  तभी उसे महसूस हुआ कि वह तीनो साये उसके आसपास ही हैं , सरजू डर से उनकी तरफ तो नही देख सकता था , मगर आवाज से स्पष्ट था कि वह तीनो महिकाएँ थी ।
अचानक भय के कारण सरजू ने अपनी आंखों पर हाथ रख कर मुह ढक लिया , जो भी होगा ,और कुछ तो कर नही सकते , कुछ देर और कुछ नही हुआ ,सिर्फ हल्की हल्की आवाज कभी बाएं तरफ से कभी दांयी तरफ से आती रही , वह तीनो उसी रास्ते थी जो वापस जाने का था इस लिए वापस जाने की तो सोच भी नही सकता था  ।
तब  सरजू को स्पष्ट सुनाई पड़ा ,एक कहने लगी , दीदी मुझे मेरी सास ने आज खाना नही दिया और जंगल मे लकड़ी काटने भूखा भेज दिया , अरे मुझे भी  मेरी सास ने आज चुटिया खींच कर पीटा,रोज का यही हाल है ,  दूसरी बोली , और मुझे भी आज सास ने अंधेरे में ही उठा दिया , रात  तब  खुली जब मैं गांव से बाहर एक जगह पर बहुत देर तक सोई रही तीसरी तीसरी ने कहा  और रोने लगी ,उसे देख दोनों भी रोने लगी , ये सुनकर सरजू भयभीत हो गया , क्या भूतनियों की भी सास होती है वह सोचने लगा , फिर तीनो सुबक सुबक कर रोने लगी । किसी अनहोनी की आशंका से सरजू का दिख बैठ रहा था,एक तो भूतनियाँ ऊपर से उनका रोना , कुछ भयानक ही होने वाला है ,  हे भगवान अब क्या होगा तीनों बीस फुट की दूरी पर थी , फिर तीनो आपस मे खुपुसाने लगी , और सिर से दुपट्टा निकाल कर आपस मे एक दूसरे को बांधने लगी  ।
"दीदी चल ना उस आदमी को भी बांध देते हैं " , उनमें से एक बोली ।
"अरे नही री छोड़ रहने दे"  ,दूसरी ने कहा
'हाँ दीदी चलो चलो उसे भी बांध देते हैं , मजा आएगा' तीसरी बोली ,भूत अगर आदमी को बांधेगा तो क्या करेगा इसकी कल्पना मात्र से सरजू का धैर्य जवाब देने लगा  ।
अब सरजू मारे डर के कांपने लगा  , दो ने बांधने को कहा और एक ने  मना किया मतलब बाँधना तय है , मगर मुझे अपने साथ बांधकर कहाँ ले जाएगी  ये सोच सोच कर सरजू और ज्यादा भयभीत हो रहा था , उसने फिर दोनों हाथ मुह पर रखे और अपने आपको एक तरह से उनके हवाले छोड़ दिया ।
उन तीनों की आवाज करीब आ रही थी  तभी एक बोली "अरे रहने दे इसे  ,इसका क्या कसूर है"  ।
"तभी दूसरी बोली और हमारा ही क्या कसूर था " दीदी ,में तो इसे बांधूंगी  ।
सरजू के हाथ पैर फूल गए  बेटा अब तो गए समझो ,ये कौन से कसूर की बात कर रहे हैं , तभी उसने अपने इष्ट देव का ध्यान किया , हे परमेश्वर रक्षा करो , और मन ही मन याद करने लगा
"अरे चल हट रहने दे इसे " पहली बोली और फिर तीनो की लड़ने झगड़ने की आवाज आई , और फिर तीनो की विलाप करने की और सुबकते हुए रोने की आवाज आई , और फिर एक आवाज हुई "छपाक" जैसे उसे पहले सुनाई दी थी पानी मे कूदने की , , और फिर खामोशी छा गई , सरजू ने डरते डरते आंखे खोली , उसे कोई नजर नही आया तो वह जल्दी से पनचक्की की तरफ  रास्ते पर दौड़ पड़ा , और अपने इष्ट देव को याद करता रहा , पनचक्की पर आकर उसने चैन की सांस ली ।
वह कुछ देर वहां पर बैठा रहा  फिर उठा और थोड़ी दूर पर दूसरी पनचक्की की तरफ गया और वहां पर उसके मालिक को उठाया  जो कि उस समय गहरी नींद में सोया था  ।
वह एक सफेद दाढ़ी मुछ वाला साठ साल का वृद्ध आदमी था ।
सरजू ने उसे कहा कि वह साथ वाली चक्की वाले जब्बर सिंह का नाती है और आज वह चक्की पर आया था और साथ ही उसने अपने साथ हई कुछ देर पहले की सारी घटना उस आदमी को बताई ।
उस वृद्ध ने उसे कहा कि आराम से अभी सो जाओ , रात बहुत हो गई है  ,सुबह बात करेंगे  ।
सरजू उसके साथ वहीं पर एक दरी बिछाकर सो गया ।
सुबह रात खुली तो चारों तरफ उजाला हो गया था  पनचक्की का काम दस ग्यारह बजे सुरू होताथा , धूप थोड़ी बहुत निकल चुकी थी , उस वृद्ध ने एक गिलास में चाय लेकर सरयू को दी ,और बोला " चाय पीकर फिर वही चलते है जहां तुम रात में गए थे "  ।
थोड़ी देर में दोनो उस तरफ चल दिये , आगे आगे सरजू था  ।
"-वो रहा चाचा वहीं पर से आवाज आई थी , और ये पेड़ ,अरे ये पेड़ तो रात को गिर गया था , ये फिर स सीधा  कैसे हो गया " सरजू ने कहा ।
इस पर वृद्ध हंसने लगा , और बोला " चलो आगे तो चलो " ।
सरजू आगे चलने  लगा , एक जगह पर सरजू आकर रुक  गया  ।
" ये देखो चाचा मैँ यहीं पर  इस पत्थर पर बैठा हुआ। था रात को और वो तीनो वहां थोड़ी दूर पर थी " सरजू एक तरफ इशारा करते कहा ।
सरजू ने देखा इस समय वहां कोई नही था  , सब शांत , दिन के उजाले में कहीं कुछ नही , और रात के अंधेरे में कितना भयावह , कितना डर , कितनी दहशत  ।
एक पत्थर पर बैठ कर  वह वृद्ध बोला ," देख बेटा सरजू में बताता हूँ तुम्हे इस के पीछे का सच " ।
वह बताने लगा , " कोई आठ दस साल पहले की बात है , धनौली गांव  और  आसपास के गांव और हमारे गांव की औरतें इस सामने के जंगल मे लकड़ियां काटने आती हैं  ।
" धनौली गांव की ये तीन औरतें अक्सर साथ ही आती जाती थी , मंगला, रेवती और  चंद्रा आपस मे सहेलियां थी , तीनों के पति शहर में नौकरी करते थे  शादी के कारण कर्ज का बोझ जो हो गया था , घर मे उनकी सास उन पर तरह तरह के अत्याचार करती थी , बेचारी बहुएँ जुल्म सहती रहती थी " ।
"  वह आपस मे एक दूसरे को अपनी दुख भारी कहानी बताती थी ,(उस जमाने मे चिठी पतरी चलती थी और महिलाएं तो अधिकतर अनपढ़ ही होती थी ), किसी से चिट्ठी लिखवा कर पति को शिकायत करती , मगर चिट्ठी कभी कभी दस दिन बाद पहुंचती ,कभी पहुंचती ही नही थी ,जवाब की उम्मीद तो क्या करें " ।
" यूँ तो सास बहू झगड़े का ही प्रतीक माना जाता है , हर सास अपनी बहू पर हावी रहना चाहती है पर यहां कुछ ज्यादा ही बड़ी सममस्या थी " ।
" एक दिन तीनो ने आपस मे फैसला किया कि वह अब बर्दास्त नही कर सकती , और भागिरथी में कूद कर अपनी जान दे देंगी " ।
" अपने फैसले को कार्य रूप होकर एक दिन तीनो जंगल आई ,दिन भर बैठी रही , और जब श्याम होने लगी तो तीनों ने अपने आपको बांध लिया ,ताकि उस दौरान कोई अपना फैसला ना बदल सके , और फिर तीनों ने एक साथ छलांग लगा दी " ।
" तीनो  पानी मे डूब कर बहने लगी , जब वह तीनो घर नही पहुंची तो घर वालों ने खोज बीन की , बहुत ढूंढा ,मगर उनका कहीं पता ना चला "  ।
" फिर एक दिन किसी ने खबर दी कि सिलारी गाँव के नीचे जो भागिरथी का मोड़ है वहां पर तीन युवतियों की लाशें तैर रही हैं , लोग वहां गए उन्हें बाहर खींचा तो उनकी पहचान  की गई , ये वही तीन युवतियां थी " ।
" तब  धनौली के लोग गए ,और उनका अंतिम संस्कार किया , सिलारी गांव के नीचे  भागिरथी के  मोड़ पर पानी के बहाव से हर चीज किनारे लग जाती है  " ।
" बेटा ये तीनो उन्ही की आत्मा थी जो आज भी यहां भटकती हैं और तुम्हे कल शाम को दिखी थी " ।
उस वृद्ध ने गंगा की तरफ देख कर उन आत्माओं के लिए हाथ जोड़ दिए ,सरजू भी उनकी करुण कहानी सुन विषाद  से भर उठा , नियति की इन विडंवना को देख वह स्तब्ध था उसने भी आत्माओं के लिए श्रद्धा से दोनो हाथ जोड़ दिए ।
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                            भगवान सिंह रावत  (दिल्ली)

Saturday, December 30, 2023

तेरे इश्क़ में ( भाग 16 )

 

अब तक आपने पढ़ा ..............................।
सुमेर सिंह शत्रुओं की अत्यधिक क्षति कर   शत्रुओं को पलायन करने पर मजबूर करता है ,और विजई होकर लौटता है ,दुर्गा सुमेर सिंह के लिए चिंतित होती है और अगले दिन किले पर जाकर  युद्ध के विषय मे मालूम करना चाहती है ,परंतु युद्ध से वापस आ चुका सुमेर सिंह भी दुर्गा को आता देख  किले से उसकी तरफ चल पड़ता है दोनो मिलते है , दुर्गा सुमेर सिंह लिपट जाती है , फिर सुमेर सिंह दुर्गा को कहता है कि वह प्रातः मां साहेब से मिलने जारहा है और हम  दोनो की बात मा साहेब के समक्ष


रखेगा और उनकी सहमति भी लेगा , तब दुर्गा भावुक होकर फिर सुमेर सिंह के सीने से लग जाती है ,सुमेर सिंह अपने घर में साहेब से मिलता है और अपने और दुर्गा के विषय मे बताता है , काफी सोच विचार के बाद मां साहेब अनुमति दे देती हैं  ।

अब आगे ......................।
सपना ने देखा  डमरू और दीपू चंदू के घर से अंधेरे में छुपते छुपाते धीरे से बाहर की तरफ जा रहे थे , सपना का मष्तिष्क घूम गया , कुछ तो ठीक नही चल रहा , वह तेजी से चंदू के घर की तरफ गई ।
वह जल्दी से चंदू के घर चंदू को देखना चाहती थी कि आखिर माजरा क्या है , ये दोनों चोरों की तरह क्यों जा रहे है , जैसे कोई देख ना ले  , सपना जिस कमरे में चंदू  रहता था , दरवाजे को धक्का मार कर एक सांस में अंदर पंहुच गई ।
चंदू सपना को इस तरह आता देख चौंक गया ,"अरे तू सपना इस तरह रात में कैसे " चंदू एक कपड़े की पोटली को पीछे छुपाते हुए बोला  ।
" में क्यों आई हूं  ये भी बताऊंगी पर पहले तू ये बता कि तू छुपा क्या रहा है , दिखा मुझे " सपना बोली
तब चंदू बोला " क्यों दिखाऊँ तुझे , और ये बता तू इस तरह धड़ धड़ाते अंदर कैसे चली आई "
" अरे अपने ससुराल में आई हूं और अपने होने वाले पति के पास आई हूं " सपना ने कहा
चंदू उसकी दिलेरी देख कर दंग राह गया ,और बोला
" सपना तेरी हिम्मत और तेरी जिद्द को देख कर मानना पड़ेगा कि तुझमे कुछ तो है ,तेरे जैसी लड़की तो मैंने ना सुनी ना देखी "  ।
" नही देखी होगी , मैँ चंदू की बींदणी हूँ कोई ऐसी वैसी नही " सपना बोली ।
" वाह.. वाह.... गले पड़ने की भी हद्द होती है , बेशर्मी की सारी हद पार कर दी तूने , लड़की का जन्म कैसे मिला तुझे , इतनी जिद्द तो हम लड़कों में भी नही होती " चंदू बोला  ।
" अब तू चाहे जो समझ ज़ मैंने बचपन से तुझे चाहा है , तुझसे प्यार किया है बस में कुछ सुनना नही चाहती ,में लोहार की बेटी हूँ और एक बार जिसे चाहा फिर वह चाहे कैसा भी हो उसे अपना बनाकर छोड़ती है " सपना बोली  ।
" पर मैं तो कभी भी इस तरह की बात नहीं सोच पाया , मुझे ये जबरदस्ती का सौदा मंजूर नही है , मै अपना रास्ता खुद बनाउंगा "चंदू बोला  ।
" चंदुऊऊउ" ....... । सपना जैसे चीख पड़ी , फिर शांत होकर बोली " चंदू देख तो तेरा रास्ता तेरे सात्मने है , तेरे  और मेरे बाबा की मेले में जो बातें हुईं , तभी से मैं तुझे चाहने लगी थी चंदू ,मैँ बचपन में खिलें उन फूलों को  यादगार बनाकर रिश्तों की माला में पिरोना चाहती हूं , इश्क के इन खिले हुए फुलों को तिरस्कार की आंधी में मत उड़ा चंदू , हम दोनों एक ही मंजिल के दो राही हैं " ,  उसने भावावेश में चंदू का हाथ पकड़ लिया  ।
चंदू ने आराम से उसका हाथ पकड़ कर अपने से अलग कर दिया ,और कहा " सपना तू ये सपना देखना छोड़ दे  ये सब जो तू सोच कर बैठी है , कभी हो नही पायेगा " ।
चंदू का बर्ताव देख कर सपना आग बबूला हो गई , उसकी आँखों मे खून उतर आया ,झटके से वह उठी और कमर से बंधी छोटी कटार हाथ मे लेकर बोली ,
तो तू भी सुन ले चंदू ," मैं बींदणी बनूंगी तो तेरी और इससे ज्यादा तूने कुछ करने की जुर्रत की तो ये कटार या तो तेरे पेट मे घुसेगी या मेरे सीने में इतना याद रखले " , सपना जोर से चीख कर बोली  ।
उसकी आवाज सुनकर दूसरे कमरे से चंदू के माँ बाबा दौड़ते हुए आये तो वहां सपना को देखकर चौंके , वह सहम कर बैठ गए , उसकी बातें सुनकर सारा माजरा समझ गए  ।
जी कड़ा कर चंदू की अम्मा चम्पा बोली , " बेटी तुम क्या जाणो हमने इसे बहुत समझाया भला बुरा कहा , पण ये छोरा  कोणी समझे ,  पता नई ये क्या  चावे है पर तु परेशान मत हो हम इसे फिरके समझा कर राजी करेंगे  " ।
मुंशी राम भी डरके मारे हाथ जोड़कर बोला " बेटी मुझे याद है घासी राम को दी हुई जबान , हमने कई बेर इसे या बात कही , इसे हम राजी करलेंगे " ।
सपना का गुस्सा कुछ धीमा हुआ तो वह बोली , " ठीक है अम्मा राजी केरल इसे , और हाँ ये दीपू और डमरू क्या कर रहे थे रात में यहां , जो चोरो की तरह छिपते भाग रहे थे " ,सपना चंदू की ओर देख कर बोली ।
" सुन चंदू तू कुछ तो गलत काम कर रहा है , इसका पता मैं करके रहूंगी , सुधर जा काम पर ध्यान रख नही तो मैं तो तुझे सुधार ही दूंगी ";सपना ने कहा और पलट कर चली गई ।
सपना का ये रूप देख एक बार चंदू भी डर गया ,परंतु कुछ सोच कर बोला , " हुँ.....ये सुधारेगी मुझे ,  इससे डरता कौन है  ? " ।
चम्पा चंदू की हरकत पर और सपना की धमकी पर अपना कर सिर पकड़ कर बैठ गई , वह दोनो ये बात अच्छी  तरह समझते थे कि चंदू  सपना से ब्याह की  बात कभी नही मानेगा  ।
अजीब जुनूनी इश्क था सपना का उसे खुद चंदू का चेहरा इतना आजर्षक नही दिखता था ,ओर खुद उसे भी पता नही कि उसने कब अपने दिल मे चंदू को जगह देदी , घूम फिर कर उसका दिल चंदू पर ही अटक जाता था ,वह चेहरे से सुंदर नहीं था मगर वह शरीर से बलिष्ठ था  जब वह कमीज उतारकर घण चलाता था तो उसकी सख्त भुजाओं पर पसीने की तैरती बूंदों को  देख सपना दीवानी हो जाती थी । अपनी चाहत पर उसे किसी और का अधिपत्य स्वीकार नहीं था , और वह जान लेने और जान देने पर उतारू हो जाती थी  ।
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उधर दुर्गा को  सुमेर सिंह ने संदेश भिजवाया कि उसकी माँ साहिब ने उसे अनुमति देदी तो दुर्गा को एक बार तो अपने कानों पर विस्वाश नही हुआ , परंतु ये संदेश उसके हुकुम का था ,वह कैसे विस्वाश ना करती , उसने मन ही मन  मां साहेब के प्रति कृतज्ञता प्रकट की और खुशी से झूम उठी , औरअपनेऔर सुमेर सिंह के ब्याह के सपने बुनने लगी ।
जारी है .........( " तेरे इश्क़ में " भाग 17 )

Thursday, December 21, 2023

तेरे इश्क़ में (भाग 9)


 अब तक आपने पढ़ा--------।

दुर्गा एक लोहार की बेटी है  ,लोहार रजपूती सेना के लिए युद्ध के हथियार बनाते है ,दुर्गा हथियार किले की चौकी पर लेजाती है जहां सैनिक टुकड़ी का सरदार सुमेर सिंह दुर्गा से प्रेम कर बैठता है , दुर्गा को चाहने वाला एक लोहार और है चंदू ,  एक दम बिगड़ैल निकम्मा कामचोर असंतुष्ट ।   दुर्गा के अम्मा  बाबा दुर्गा  में आया बदलाव देख  शक करने लगते हैं दुर्गा  से पूछते है पर वह नही बताती ।  सुमेर सिंह दुर्गा  से नदी किनारे बावड़ी पर मिलता है और  उसे तसल्ली देता है और आगे क्या करना है ये बताता है

सपना चंदू को बचपन से चाहती है  मगर चंदू उसे घास नही डालता , तब सपना चंदू से उसके बाबा के किये हुए बचपन के वादे की याद उसे दिलाती है मगर वह नही मानता । अब आगे ............।

चंदू पसीने में तर बतर हो चला था , हथोड़े से पीटते पीटते उस लोहे के टुकड़े को, पर लोहा आकार नही ले पा रहा था , मन ही मन अपने पुरखों को कोसता जा रहा था , क्या सौंप कर गए हैं हमारे बड़े बूढ़े हमे , विरासत में ,लोहा लंखड़ , पर काम तो करना ही था , वह बार बार सोचता था क्या हमारे लिए कोई और काम नही था , हमारी भी जमीन होती , या फिर हम कोई व्यापार करते , और भी तो बहुत काम थे ,बस एक यही काम बचा था हमारे लिए , हर समय उसके चेहरे पर असंतुष्टि के भाव रहते थे  ।

तभी सामने से उसे सपना आते दिखाई दी 

" अरे चंदू ,आज अकेले ही लगा है काम पर , सूरज आज पश्चिम से निकला है  क्या ? " सपना बोली 

" हाँ अकेले ही " चंदू बोला " क्या मलतब है तेरा ? "

" अरे गुस्सा क्यों करता है कभी काम करते नही देखा ना तुझे , इस लिए कह दिया "  ।

" अम्मा कही गई है , बाबा को  ज्वर है " , चंदू ने कहा । 

" मैं करूं कुछ मदद  ? "  सपना बोली 

" अरे हट परे  तू क्या करेगी मदद " चंदू ने तिरस्कृत भाव से कहा 

 " कर तो मैं बहुत कुछ सकती हूँ तू कहे तो " सपना ने बात करने का सूत्र पकड़ लिया ।

 " ये तेरी गले पड़ने की आदत गई नही अभी , जब देखो तब........" । 

" अरे गले पड़ रही हूं ,कोई गाला नही घोंट रही हूँ तेरा " ।और सपना बैठ कर संडासी पकड़ते बोली  "चल चला हथौड़ा " ।

" तेरे जी मे क्या है " चंदू बोला 

 " तू सब जाणे है चंदू , पर तु पता नही कहां क्या सोचता रहे " , सपना बोली 

" देख सपना  तुझे पता है ना तू जानती है हम बचपन से एक साथ खेले कूदे हैं " ।

" हाँ जानती हूं " सपना ने कहा 

" हमारे परिवारों का  भी आपस मे काफी मेल जोल है " चंदू बोला 

 " हाँ है ना " सपना ने खुश होकर कहा 

" आपस मे हम पड़ोसी भी हैं " चंदू ने फिर कहा ।

" अरे पड़ोसी के अलावा और भी बहुत कुछ हैं 

सपना ने मुश्करा कर चंदू की तरफ देखा और कहा ,   "चलो देर से ही सही  तुझे अक्ल तो आई " ।

" और हमे एक दूसरे की आदतों का  पता है  ,  फिर क्यों तंग करती  फिरती है मुझे ,ये अपनी सिर होने  की आदत छोड़ दे "  चंदू बोला ।

सपना को एक झटका लगा वह जैसे आसमान से जमीन पर गिरी हो ।

" क्यों रे क्या कमी है मुझमे , बता तो जरा " सपना बोली

"  मुझे तुझमे ऐसा कुछ नही दिखता , मेरी पसंद कहीं और है  , बात भी हो गई है " , चंदू बोला ।

" जाणू हूँ , सब जाणु हूँ , जितना वहम पालना है पाल ले अपने मन मे ,  पर कुछ होणे का नही , ये मुझसे लिखवाले , और मैं भी ना होणे दूंगी ये कभी जो तू सोचे बैठा है  , ये ध्यान से सुण ले , सपना तीखे स्वर में बोली

" इतने छोरे हैं इस गांव में , मैं ही मिला हूँ तुझे, ऐसा मुझमे क्या देखा है तूने " , चंदू बोला 

" ये तो तू अपने बाबा से पूछ ,क्या जबान दी थी तेरे बाबा ने मेरे बाबा को , जब हम छोटे थे तब  , तुझे याद नही होगा पर मुझे याद है , मेले में जब बाबा हमे घुमाने ले गए थे ,  तब तेरे बाबा ने कहा था "

" यार घासी राम  अपने चंदू और सपना की जोड़ी कितनी अच्छी लग रही है " ।

" हाँ यार मुंसी जोड़ी तो जम रही है " घासी राम ने कहा

" तो तू कहे तो आपणी छोरी को मेरे चंदू से ब्याह दियो " मुँशी बोला ।

" हाँ हाँ क्यों नही ,रही जबान " घासी राम ने जवाब दिया

" ठीक है तो पक्का मेरी तरफ से भी " मुँशी ने कहा

" और दोनो ने आपणे हाथ मिला के बात पक्की कर दी थी  " सपना ने कहा ।

" अरे वा बात तो बचपन की थी , बचपन मे जाने किसने कहाँ क्या कहा था  " चंदू बोला  ।

" पर में तो तब से ही  तुझे अपना जाणु हूँ ,  में तो तुझ से ही ब्याह  करूंगी " सपना बोली

" तेरी जबरदस्ती है क्या " चंदू बोला 

" हाँ यही समझ ले " और सपना झटके से खड़ी हो कर बोली याद रख ले मैं जमीन आसमान एक कर दूंगी और ववाल मचा दूंगी , और आंखें तरेर कर पैर पटकती बड़बड़ाते चली गई । चंदू हैरत भरी नजरों से उसे देखता रहा ,और सोच में पड़ गया ,इसको सारी बातों का पता कैसे हो गया ,और इतने विस्वास से ऐसी बात क्यों कह गई , हूँ.....शायद  रस्सी कही और भी उलझी हुई है ।


जारी है...........तेरे इश्क़ में  ( भाग  9 )


Monday, December 18, 2023

तेरे 1शक में (भाग 15)

 अब तक आपने पढ़ा ...............


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सुमेर सिंह दो शत्रुओं को मौत के घाट उतार कर अपने उच्चाधिकारी से आदेश लेकर एक शहस्त्र सेना लेकर शत्रुओं पर आक्रमण के लिए निकलता है पहले धनुर्धारी शत्रु की सेना के नायक के साथ कई शत्रुओं का विनाश करते हैं , उसके बाद सारे छुपे हुए शत्रु बिना नायक के तितर बितर हो इधर उधर हो जाते है भीषण युद्ध होता है शत्रु की आधे से ज्यादा सैनिक मारे जाते है , शेष भाग जाते है ।

दुर्गा को युद्ध का पता लगता है  तो वह सुमेर सिंह के प्रति चिंतित हो जाती है ।

अब आगे ................…।

दुर्गा तेजी से किले की तरफ बढ़ रही थी , उबड़ खाबड़ पगडंडियों के पथरीले रास्ते पर वह ऐसे चल रही थी मानो नीचे कंकर पत्थर कुछ है ही नही ,  झाड़ झंकाड का भी उस पर कोई असर नही था , उसके पैर जगह जगह से छिल गए थे , परंतु उसे कोई परवाह नहीं थी , आज हथियार भी नही थे फिर भी वह किले पर अपने  हुकुम से मिलने आ पहुंची थी , अब उसे किसी की परवाह नहीं थी , इश्क के आसमान में वह इतना ऊंचा उठ चुकी थी कि उसका हौसला सातवें आसमान पर था ।

उसे  सपना की तरह दिलेर बनना था , वह सुमेर सिंह का हाल जानने के लिए किले पहुंची थी , युद्ध का क्या हुआ , युद्ध खत्म हुआ या अभी जारी है , हुकुम कहाँ है , कही घायल तो नही ,  उसके मन मे कई प्रश्न थे , जो रह रह कर  उसे भ्रमित  कर रहे थे और  जिसका उत्तर उसे चाहिए था ।

अभी किला उससे थोड़ी दूर था कि अचानक उसकी नजर सामने किले की तरफ गई , उसे कोई आता दिखाई दिया ,कौन होगा ? एक और प्रश्न उसके मष्तिष्क में घूम गया , जो भी हो , उसने अपना शिर झटक दिया और आगे बढ़ गई ।

कुछ देर आगे चलने के बाद उसके पग अचानक थम गए , " क्या ..........सच मे ये तो हुकुम हैं " , उसके अंतर्मन में हर्ष की लहर दौड़ गई और होंटों पर मुश्कान छा गई , वह जोर से चिल्ला उठी " हुकुम....हुकुम ".....। और तेजी से दौड़ पड़ी ।

और नजदीक आकर सुमेर सिंह के सम्मुख मुस्कुरा कर खड़ी हो गई , सुमेर सिंह भी मुश्करा कर  मूर्तिवत हो गया , दोनो एक दूसरे को अल्पक निहारते रहे , मानो सदियों से मिलने पर अपनी आंखों की प्यास बुझा रहे हों  ।

दुर्गा मानो कह रही हो , " जाओ में तुमसे बात नहीं करती , बताया ही नही की युद्ध मे जा रहा हूँ " ।

और सुमेर सिंह कह रहा हो , " सब कुछ अचानक हुआ है कैसे और कब बताता " ।

" जानते हो पूरी रात मैंने कैसे काटी है , एक पल को भी तुम्हारा चेहरा मुझसे दूर नही हुआ " दुर्गा जैसे कह रही हो ।

" जानता हूँ दुर्गा सब जानता हूँ पर देश के लिए हमारा जीवन सर्वप्रथम है "  ।

" सच मे  मुझे बड़ा डर लग रहा था युद्ध से , बहुत डर गसी थी मैं , कुछ अनिष्ट की आशंका से  ।

" कैसी बात करती हो दुर्गा , मेरे साथ तुम्हारा प्यार जो था , जानती हो सच्चे प्रेम की ताकत "  ।

दुर्गा जैसे आस्वत हो गई थी , और फिर तेजी से सुमेर सिंह के पास आकर उससे लिपट गई , सुमेर सिंह ने भी उसे दोनो हाथों से कस कर आलिंगनबद्ध कर लिया ।

इसके पश्चात उन्हें कुछ आपस मे पूछने की आवश्यक्ता नही पड़ी आंखों ही आंखों में दिल के सवालों का जवाब मिल चुका था ।

" ओह..... हुकुम ओह....कैसा है ये कमबख्त इश्क बस ऐसे ही तुम्हारी बाहों में  मर जाने को जी चाहता है " और वह और जोर से सुमेर सिंह से चिपट कर मानो एकाकार होना चाहती थी , " काश ऐसा हो कि हम दोनों एक हो जाएं"  , दुर्गा भावावेश में आकर बोली ।

ओर सुमेर सिंह भी उसे अलग नही होने देना चाहता था , कुछ देर तक निस्तब्धता रही , कोई कुछ नहीं बोला बस एक दूसरे की धड़कनें सुनते रहे ।" 

" दुर्गा..... दुर्गा" ....सुमेर सिंह ने दुर्गा को अपने बाहुपाश से थोड़ा अलग करते हुए कहा ।

" सुबह मैं अपनी माता से मिलने जाऊंगा , और उनके समक्ष तुम्हारे और मेरे विषय मे अपना पक्ष रखूंगा "  , सुमेर सिंह ने कहा ।

" सच कह रहे हो हुकुम " ,दुर्गा ने उसका एक हाथ पकड़ कर अपने सीने पर लगा कर कहा ," देखो मेरा दिल कितनी तेजी से धड़क रहा है " ।

" दुर्गा तुम निश्चिन्त रहो , सब ठीक होगा , मुझे मेरी माता पर और तुम्हारे प्रेम पर पूरा भरोसा है " । 

दुर्गा ने उसका हाथ होंठों पर लेजाकर चूम लिया  ।

" और मुझे मेरे हुकुम पर "  , दुर्गा ने कहा 

" में तुम्हारे भरोसे की रक्षा के लिए दुनियां से टकरा जाऊंगा दुर्गा , तुम देखती जाओ जीत आखिर इश्क की ही होगी  " ।

दुर्गा एक बार फिर से सुमेर सिंह के नजदीक आकर अपना शिर उसकी छाती पर रख दिया  ।

                    -------------------------------------

भंवरी देवी एक ओर बाहर दीवान पर विराजमान हैं , सुमेर सिंह उनके सम्मुख खड़े होकर और इधर उधर टहलते हुए कुछ सोचते हुए बार बार माता के चेहरे की तरफ देखते है , अपने अंदर जो था सुमेर सिंह एक बार मे कह चुका था , अब वह माता के उत्तर की प्रतीक्षा में था  ।

भंवरी देवी गहनता से  विचार कर रही थी , एक तरफ रजपूती प्रतिष्ठा का प्रश्न था तो दूसरी तरफ पुत्र का मोह था , वह पुत्र की बात को अनसुना भी नही कर सकती थी , वह जानती थी , कि उसका पुत्र जो करता है करके छोड़ता है , वह दुर्गा के अलावा किसी औऱ के विषय मे विचार करने की अपेक्षा  आजीवन अविवाहित रहना पसंद करेगा , 

बहुत समय बाद  निस्तब्धता तो तोड़ते हुए भंवरी देवी बोली ," सुमेर सिंह मेरी बात ध्यान से सुनो , हम राजपूत हैं मुझे अपनी रजपूती परंपरा और प्रतिष्ठा  को ध्यान में रखना जरूरी है , और सामाजिक परिवेश में रहकर रीति रिवाज , मान मर्यादा का निर्वाह भी करना है " ।

सुमेर सिंह मा साहेब के शब्दों को सुनकर एकाएक अधीर हो उठा था , अपने पक्ष में निर्णय ना आने पर सुमेर सिंह विचलित होने लगा , उसके पश्चात भंवरी देवी बोली , " लेकिन सुमेर सिंह तुम मेरे बेटे हो ,मुझे तुम्हारे विषय मेभी सोचना है , तुम्हारा हित अहित भी मुझे ही देखना है , तुम राजपूत हो और राजपूत जो भी करता है , निडर होकर उस का सामना करता है , इतिहास गवाह है राजपूतों ने इस तरह के कारनामों को अंजाम दिया है ,और फिर एक अलग तरह का इतिहास रचा है , अगर तुम भी कुछ इस तरह के कार्य करने की क्षमता रखते हो तो तुम्हे भीषण कठिनाइयों का सामना करना होगा , तुम तैयार हो " ?

" हाँ  माँ साहेब  मैँ हर तरह से तैयार हूं , आप शीघ्र अपना  निर्णय दें " सुमेर सिंह ने कहा ।

" तो ठीक है  , तुम जो करना चाहते हों करो , इसके पश्चात जो  जो हमारे  समाज मे हमसे जुड़े लोग हैं , जो निर्णय वह लोग करेंगे , तुम्हे मान्य होना चाहिए , वह लोग तुम्हे मुझसे पृथक रहने का विचार भी बना सकते हैं , और  हमारे सामाजिक रीतियों से अलग भी कर सकते हैं , या फिर कुछ भी ना करें यह भी संभव  हो सकता है , अभी ये सब भविष्य के गर्त में छिपा  है ,तुम्हे स्वीकार है " ? भंवरी देवी बोली 

" हाँ माँ साहेब  मैँ तैयार हूँ सुमेर सिंह ने जवाब दिया " ।

" ठीक है , मैने एक माता का और राजपूत दोनो का कर्तव्य निभाया है , इससे आगे मुझे कुछ नही कहना " ,और भंवरी देवी वहां से चली गई ।


जारी है...........तेरे इश्क़ में (भाग 16)

                     भगवान सिंह रावत (दिल्ली)

Sunday, December 10, 2023

तेरे इश्क़ में (भाग11)

 अब तक आपने पढ़ा.....................।

 चंदू को जब यह पता चलता है कि दुर्गा सुमेर सिंह से प्रेम करती है तो वह गुस्से मे झुंझला उठता है ,वह जानता था कि दुर्गा अपना रास्ता नही बदलेगी ,उस पर सामाजिक दबाव बनाना होगा  । उधर सुमेर सिंह अपने और दूर्गा का हाथ मांगने दुर्गा  के घर उसके माँ बाबा के पास आया ,और उनकी सहमति मांगी ,और उन्हें समझाया ,वापस आने के पश्चात उसे कुछ दूरी पर कुछ हलचल सुनाई पड़ी , तलवार खींच कर वह अकेला ही उस दिशा की ओर चल पड़ा ।

अब आगे ...................।

सुमेर सिंह ने अपनी तलवार खींची और दबे पांव उस आवाज और उजाले की दिशा की ओर अकेला ही चल पड़ा , उसे अकेले जाने में कोई भय नहीं था ,वह अच्छी तरह जानता था कि वह अकेला दस पर भारी पड़ेगा , अगर हम अपनी ही जमीन पर शत्रु से भय खाने लगे तो हमे अपने को राजपूत कहलाने का कोई हक नही है , बहुत समय से ऐसे ही मौके की तलाश में था सुमेर सिंह , अपनी मिट्टी के लिए कुछ कर गुजरने का मौका ।

सावधानी बरतते हुए वह उस दिशा की ओर बढ़ रहा था , अब उसे दो व्यक्तियों की आवाज  सुनाई पड़ रही थी , मगर इतनी स्पष्ट नहीं कि ध्वनि को  शब्दों में पिरोया जा सके । उसने देखा लगभग  आधे कोस की दूरी पर आग जल रही है ,मुख्य मार्ग से कुछ अलग हट कर , जिससे किसी आते जाते राहगीर को  कोई आभास न हो कि शत्रु यहां डेरा  डाले छुपा है । बिना कोई आहट किये वह और निकट पंहुंचा ,अब वह स्पष्ट उन्हें देख सकता था ,वह दो व्यक्ति थे , और बैठकर आग ताप रहे थे । और सामने  की  तरफ एक छोटा शिविर लगा रखा था  ।

सुमेर सिंह समझ गया कि ये लोग यहां के नहीं है ,शत्रु हैं ,और आग जलाने का अर्थ है किसी मुखबिर कोअपनी सटीक स्थिति का  संदेश पहुँचाना ,इस लिए  इनके वार्तालाप से  ही इनकी पहचान करनी  होगी ,अतः , प्रमाणिकता के लिए कुछ समय यहां पर व्यतीत करना होगा  ।

" आज ठंड कुछ ज्यादा नहीं है " उन में से एक बोला  

" हाँ है तो , दो तीन दिन की बात और है , बस हमारा मकसद पूरा हो जाय " दूसरे ने जवाब दिया ।

" कल तक  हमे सूत्र का पता लग जायेगा , फिर हमारा कार्य समाप्त ,दो योजन की दूरी पर तीन सौ जवानों  की टुकड़ी हमारे भरोसे पर बैठी है , बाकी कार्य उनका " । पहला व्यक्ति बोला  ।

" गुप्तचर कभी भी  आ सकता है ,हमे ये तपस्या तो करनी ही पड़ेगी " । दूसरे व्यक्ति ने जवाब दिया 

सुमेर सिंह को उनकी बातचीत से स्पष्ट हो गया कि  शत्रु धोखे से आक्रमण करने की तैयारी में है । 

अब सुमेर सिंह को अपना कार्य करना था , सुमेर सिंह यह  तसल्ली करना चाहता था कि शत्रु कितने है । 

उसने एक पत्थर को धीरे से उठाया और उनसे थोड़ी दूर पर उछाल दिया , दोनो यकायक चौंक पड़े और खड़े हो इधर उधर देख  उस दिशा में चल पड़े जिधर पत्थर गिरा था , दोनों झाड़ियों के बीच  जाकर बहुत देर तक देखते रहे , फिर शायद कोई जानवर होगा ,ये समझ कर वापस आगये ।

सुमेर सिंह समझ गया था कि अभी यहां पर सिर्फ दो ही हैं अन्यथा शिविर में कोई और होता तो  अब तक बाहर आजाता , उसने एक बार अपनी तलवार को देखा और उठ खड़ा हुआ ।

ठीक शिविर के पिछले भाग में जाकर सुमेर सिंह ने एक बार फिर पत्थर उठाया और काफी दूर तक उछाल दिया , दोनों फिर चौंके मगर उस तरफ गए नही , अरे जा भई देख तो जाकर जानवर भी बहुत हैं यहाँ , और दूसरा व्यक्ति उस तरफ चल दिया ।

पहला  बैठकर आग तापता रहा ।

अचानक आग तापते हुए उसने अपनी पीठ पर कोई नुकीली चीज चुभती हुई महसूस की " सावधान " 

का स्वर उसे सुनाई पड़ा , उसका हाथ झट अपनी कमर की तलवार  पर पंहुंचा ,एक झटके में तलवार खींच वह खड़ा होकर पलटा , सामने एक बलिष्ठ युवक को देख कर वह एक बार विचलित हुआ ,मगर फिर अपनी तलवारें उसकी तरफ तान दी , अगले ही क्षण एक टन्न  की आवाज के साथ उसकी तलवार जमीन पर थी , और दूसरे क्षण वह खुद जमीन पर गिर चुका था एक तलवार उसकी कमर में धँस चुकी थी , उसे इस बात का अहसास भी ना हो पाया कि कब उसकी तलवार गिरी और कब उस पर वार हुआ , और उसका प्राणान्त हो गया । 'वीर राजपूत कभी किसी पर धोखे से वार नहीं करते " , फिर सुमेर सिंह उनके शिविर की ओट में होकर दूसरे की प्रतिक्षा करने लगा ।  वहां कूछ ना देख कर दूसरा व्यक्ति वापस आया तो उसने पहले व्यक्ति को गिरा हुआ देखा , किसी अनहोनी की आशंका में वह कूछ सोचता  उसकी नजर सुमेर सिंह पर पड़ी । वह चौंक गया , तलवार पहले से उसके हाथ मे थी , वह सुमेरसिंह पर हमले के लिए  झपटा , वह कुछ करता इससे पहले ही खच की आवाज हुई और वह जमीन पर गिर पड़ा , उसकी गर्दन में तलवार  धंस चुकी थी ,क्षण भर में सबकुछ हो गया  ।

अगर कोई सुमेर सिंह के सम्मुख होता तो कहता कि ये कैसे हो गया ,क्योंकि पलक झपक कर खुलती बाद में थी , शत्रु जमीन पर पहले गिर जाता था , इतनी तत्परता थी सुमेर सिंह के युद्ध कौशल में ।

सुमेर सिंह ने एक गहरी सांस ली , और शिविर में इधर उधर नजर दौड़ाई , कुछ कहने पाइन का सामान और डॉ तीन युद्ध के हथियार वहां मौजूद थे कुछ तलवारें और ढाल और कुछ तीर कमान ।शत्रुओं की गतिविधियों की पुष्टि हो चुकी थी , परंतु 

मुखबिर कौन था ये मालूम नही हो पाया था , मुखबिर के लिए वहां पर रुकना समझदारी नही थी ,वह सुबह आये या अगले दिन आये कुछ कह नही जा सकता ।

सुमेर सिंह ने शिविर को नष्ट कर दिया और अगली रणनीति को अंजाम देने के लिए शीघ्रता से वापस किले पर पंहुंचा ।

किले पर पहुंचकर सुमेर सिंह ने प्रथम अपने उच्च अधिकारी के सम्मुख इस घटना की सूचना दे कर पूरा का वृतांत सुनाया ।

अधिकारी ने सुमेर सिंह को आवश्यक निर्देश दिए , और तुरंत कार्यवाही करने को कहा । प्रात काल सुमेर सिंह ने दो सौ सिपाहियों के अपने दस्ते को मैदान ने उतार कर युद्ध के लिए तैयार कर दिया  ।


जारी है....................तेरे इश्क़ में  (भाग 12)

                         भगवान सिंह रावत (दिल्ली)


तेरे इश्क़ में (भाग 13)

 अब तक आपने पढ़ा ............. ।

सुमेर सिंह दुर्गा के घर से वापस आकर जैसे ही घोड़े को बंधता है ,उसे कुछ दूरी पर कुछ हलचल सुनाई पड़ती है , वह तलवार निकाल कर अकेले ही उस दिशा की ओर चल पड़ता है , आधे योजन की दूरी पर उसे दो शत्रु के सैनिक दिखाई पड़ते हैं , समीप जाकर वह उनका वार्तालाप सुनता है , उसे शत्रु के अचानक आक्रमण की योजना की पुष्टि होती है , इस पर वह बहुत बहादुरी से दोनों  शत्रु सैनिकों को मौत के घाट उतार देता है , और शिविर नष्ट कर ,अपने उच्चाधिकारी को सूचित करता है । अधिकारी उसे आवश्यक निर्देश देकर एक सहस्त्र सेना ले जाकर तुरंत कार्यवाही करने का आदेश देता है  ।

 अब आगे ................।

 सहस्त्र सैनिक युद्ध की पोशाक में मैदान में खड़े थे सुमेर सिंह उनका निरीक्षण कर रहा था , सब के हाथों में तलवारें चमक रही थी , आगे खड़े सैनिकों के हाथों में तलवार के साथ साथ कंधे पर धनुष और पीठ पर तूणीर में पैनी नोक वाले तीर भरे थे ।अर्थात सभी सैनिक आयुध से सुसज्जित थे ।

वीर योद्धाओं आज समय आया है , अपनी मातृभूमि के लिए  अपना कौशल दिखाने का और वक्त पड़े तो  प्राणों की आहुति देने का  । मैं जानता हूँ एक एक वीर दस दस शत्रु के बराबर है , इस लिए इतनी सेना बहुत है शत्रुओं के खात्मे के लिए , एक भी शत्रु बचकर ना निकल पाए ।

सुमेर सिंह ने पहले दो घुड़ सवारों को सारी स्थिति समझाई , और नष्ट किये हुए शिविर में जाकर वहां से दो योजन की दूरी तय कर शत्रु की स्थिति  का सटीक अवलोकन कर प्रमाण स्वरूप आग जलाकर धूम्र संदेश  भेजने का आदेश दिया ।

दोनो सैनिक अगले ही क्षण आक्रामक मुद्रा में थे , सुमेर सिंह ने आदेश दिया  और सैनिक तीव्र गति से निर्धारित अभियान पर निकल पड़े ।

सुसज्जित सेना भी तैयार थी , अगले क्षण वह भी आदेश पाकर  युद्ध के लिए चल पड़ी  ।

सेना के प्रथम भाग में पचास धनुर्धारी थे ,जिनमे आगे सुमेर सिंह था  ।

पहले दो घुड़सवार तेजी से  आगे बढ़ते जा रहे थे , सुमेर सिंह के बताए गए स्थान पर जाकर उन्होंने देखा ,दो शत्रु जमीन पर अब भी मृत अवस्था मे पड़े थे , क्षण भर रुक कर उन्होंने निरिक्षण किया और दो योजन की दूरी पर नजर दौड़ाई और दोनो तीव्र गति से उस ओर चल पड़े  । 

सेना का नायक  इधर उधर चहलकदमी करता हुआ बेचैनी से मुख्य रास्ते की तरफ देखता है , फिर घने जंगल मे अपनी बिखरी हुई सेना को देखता है , जो घने पेड़ों वृक्षों के बीचों बीच छुपी बैठी थी । चार पांच सैनिक भी उसके इर्द गिर्द चहल कदमी कर रहे थे । उनकी तरफ देखकर वह नायक बोला ।

" अब तक तो गुप्तचरों को कुछ संदेश लेकर आना चाहिए था  इतना विलंब क्यों हुआ " । " संभव है मुखबिर अभी संदेश ना पंहुंचा पाया हो "  एक सैनिक ने जवाब दिया ।

" हूँ ....तुम्हारा संदेह विचार योग्य है " नायक बोला ।

" अगले दिन रात्रि के पहर में हमे किसी भी तरह से अपनी योजना को कार्य रूप देना है " नायक ने कहा ।

" जी श्रीमान ,हमारी सेना पूरी तरह से आक्रमण के लिए तैयार है " सैनिक ने जवाब दिया  ।

" ठीक है मगर आक्रमण से पूर्व रजपूती सेना की संख्या का ठीक ठीक अनुमान, और उनके शस्त्रों के विषय मे भी जानकारी भी अत्यंत आवश्यक है "  नायक ने कहा  ।

अभी दोनों का वार्तालाप चल ही रह था कि नायक को दूर से आते हुए दो सैनिक दिखाई दिए ,सैनिक अभी काफी दूरी पर थे , नायक उन्हें अपने सैनिक समझ  खुशी से झूम उठा और हाथ हिला कर अपनी युद्ध पताका को आकाश की ओर लहराया ,यही उसकी सबसे बड़ी मूर्खता थी ,सुमेर सिंह के सैनिकों को वह अपने सैनिक समझ बैठा ।

दूसरी तरफ सुमेर सिंह के सैनिकों ने जब शत्रु की पताका लहराती हुई देखी तो दोनों तुरंत सारा रहस्य समझ गए कुछ दूर चलकर वह रुके और शत्रु की मूर्खता पर दोनों मुश्कुराये ।

फिर उन्होंने शीघ्रता से सूखी झाड़ियां काट कर आग प्रज्वलित की जिससे विशाल धुवां आकाश की तरफ उठने लगा । 

सुमेर सिंह को संदेश मिल चुका था , आकाश में उठता धुवाँ देख उसने घोडों का रुख उस और मोड़ दिया । सैनिकों  के समीप पहुंच कर सुमेर सिंह ने सारा संज्ञान लिया , सैनिकों ने उन्हें पताका लहराने वाली दिशा की ओर संकेत किया ,  सेना तीव्र गतिसे उस ओर बढ़ी ।

उधर शत्रु के सेना नायक को जब  बहुत समय बीतने पर भी सैनिक नही दिखाई दिए तो वह अधीर हो उठा , तब उसने उस ओर देखा तो वह आशंका से कांप गया ,उसे धुंआ उठता दिखाई दिया ,और उसके आसपास कुछ हल चल दिखाई दी ।

उसने अपने तीन चार सिपाहियों को जो कि उसके आस पास थे ये सब दिखाया ,और जाकर सैनिकों को सावधान करने की आज्ञा दी  । परंतु देर हो चुकी थी ,वह वहां से सैनिकों को आदेश देते उससे पहले ही वह एक एक कर चारों जमीन पर  गिर पड़े ,सांय साँय कर तीर उनकी कमर में धंस गए और तडप कर शांत हो गए , नायक ने अपनी तलवार निकाली , मगर सब व्यर्थ , वह कुछ समझता उससे पूर्व एक सनसनाता तीर तेजी से उसकी गर्दन में धंस गया , और आर पार हो गया , वह चीख भी ना सका , और जमीन पर गिर पड़ा ।

कुछ दूरी पर वृक्षों की आड़ में सैनिकों ने कुछ संदेहास्पद गतिविधि होते देखी तो वह थोड़ी धोड़ी संख्या में ओट से बाहर आने लगे ,मगर वह नायक के शिविर के समीप आते इससे पूर्व ही नुकीले बाण साँय साँय कर उनके शरीर मे धंसने लगे और सैनिक कटे वृक्षों की तरह भूमि पर गिरने लगे , वहां की भूमि रक्तवर्ण होने लगी  । उन्हें इस बात का अनुमान नही था कि अकस्मात ही उन पर  धनुर्धारी आक्रमण करेंगे ,इस गतिविधि में सैकड़ों सैनिक भयंकर तीरों की चपेट में आ गये ।  

शेष सैनिक इस अकस्मात हुए आक्रमण को समझ गए और बाहर नही आये और वृक्षों और झाड़ियों के पीछे छुपे रहे , उन्हें आदेश देने वाला कोई नही था ,वे समझ चुके थे कि उनका नायक अब जीवित नही है ,

सुमेर सिंह भी समझ चुका था , उसने तुरंत धनुर्धारियों की जगह तलवार और  बर्छियो  से सुसज्जित सैनिकों को आगे कर आगे बढ़ने का आदेश दिया ।

जारी है ................। तेरे इश्क़ में (भाग14)


                        भगवान सिंह रावत  (दिल्ली


Saturday, December 9, 2023

तेरे इश्क़ में (भाग 6)

 दुर्गा के बाबा अठे आओ " गोमती बोली  

" कांता बाई के गई थी , थारी छोरी  के लच्छन ठीक कोनी , किसी के धोरे जाके फंस गई हैं , जभी गुमसुम सी रहने लगी है " ।

" तूझे कैसे पता लगा इस बात का " ,  दशरथ ने हुक्का पीते नाक से धुंआ छोड़ते कहा ।

तब गोमती ने कांती बाई वाली बात उसे बताई 

" अरे उसे आने तो दे घर उसीसे पूछ लेंगे क्या बात है 

 इतनी क्यों छो खा री है तू " ,दशरथ बोला 

थोड़ी देर में दुर्गा आ गई पाणी की गागर नीचे धर दुर्गा खटोले पर बैठ गई ,अम्मा बाबा दोनो साथ बैठे थे , " काईं हो गियो बाबा दोनो कैसे चुप चाप बैठे हो " दुर्गा ने कहा  ।

गोमती ने एक पल दशरथ की तरफ देखा औऱ कहा

" लाड़ो अरी एक बात तो बता तू आजकल इतनी गुमशुम क्यों रहती है  ? तुझे हुआ क्या है " ?

" क्या कह रही है अम्मा   मुझे भला क्या होगा में तो ठीक हूँ , काम की बात कर " दुर्गा बोली ।

" छोरी मैं तेरी अम्मा हूँ ,तुझे मैंने जना है , तेरी सूरत बता रही है बात कुछ और ही है , बता कौन है वो छोरा , जिसके पीछे तेरा ये रंग बदला है ' ।

दुर्गा एकाएक सकपका गई अम्मा को कैसे पता चल गया . " रे अम्मा कौन छोरा तू तो पागल गई है,दुर्गा बोली , अंधेरे में तीर छोड़ रही है " ।

गोमती दुर्गा के पास आई और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरती बोली " लाड़ो मैने कहा ना हमसे मत छुपा हम तेरे बैरी ना है , हम तुझे छुपके छुपके भी देख चुके हैं ,तू अपने आप मे ही हँस पड़ती है फिर मुह छुपाती है ,ये सब क्या है  बता  ? " ।

दुर्गा काफी देर तक खामोश रही  फिर उठ कर बाहर भाग गई ।

दुर्गा......। दुर्गा........। अरे सुण तो छोरी , गोमती आवज देती राह गई पर दुर्गा ने अनसुनी कर दी ।

गोमती ने कहा " दुर्गा के बाबा ,अब क्या करें ,ये तो कुछ बताती ही नही है " । 

" अरे अब ना बताती तो क्या करूँ , रहने दे ,क्यों उसे तंग कर रही है , अच्छी भली तो है , दशरथ खड़े दिमाग का आदमी था ,ज्यादा इधर उधर के पचड़े में वह नही पड़ता था " ।

" दुर्गा के बाबा , कांईं बात करो हो ,जवान छोरी है कोई ऊंच नीच हो गई तो  ? " गोमती बोली

" अरे कूछ ना होगा म्हारी छोरी ,ऐसी वैसी ना है " । दशरथ बोला और हुक्के का घूंट भरने लगा  ।

" दुर्गा के बाबा  थारे समझ मे बात काईं ना आती ,

दुर्गा की बात मैंने चंपा के छोरे से तय कर कर ली है

ऐसे में दुर्गा कही गड़बड़ ना कर दे " ।

" पर छोरी तो टाल मारे थी  , जबरदस्ती उस छोरे  के गले क्यूं बांध री है तू उसे " दशरथ बोला ।

" अरे छोरियों का क्या है जव तब टाड करती रहे है , पण माँ बाप का  तो फर्ज बणे है कि छोरी का ब्याह सही जगह और सही टैम पे हो जावे " ।

गोमती बोली

" अरे जब छोरी के मन मे ही ना है तो ,तो तू भी टाड मार वा छोरे से ब्याह की , छोरा  भी मुझे ठीक ना दीखता , चारों मेर बदनाम  लगे मुझे , म्हारी दुर्गा की उससे ना पटेगी "  दशरथ बोला ।

गोमती किसी बात को लेकर ज्यादा बहस करती तो दशरथ उसे डपट देता था , इस लिए वह ज्यादा नही बोलती थी ।

गोमती सिर पीट कर रह गई फिर चुप चाप अपने काम मे लग गई  ।

उन्हें  तभी ऐसा लगा जैसे कोई खिड़की पर हैं, और उनकी बातें सु रहा है  ।

कौन है रे 

गोमती ने बाहर आकर देखा पर वहां कोई नही था  

दुर्गा भी वहां नहीं थी  ।

तेज कदमों से भागती ,खुद को छुपती छिपाती वह गांव से बाहर एक पेड़ के नीचे बैठ कर सुस्ताने लगी और अपनी साँसों को संयत करने लगी ।

 ओह राम.......। आज पकड़ी जाती ,बाल बाल बच गई ,दुर्गा के अम्मा बाबा आज पकड़ ही लेते ,और अपने सीने पर हाथ रख कर वह आश्वस्त हो गई  ।  उसे अभी अपना काम अधूरा लगा , यूँ तो वह जानती थी कि उसके रास्ते मे कोई आने वाला नही है , उसकी चाहत कुछ अलग ही थी ,बल्कि अनोखी थी , इश्क भी क्या अजीब चीज है किस पर आ जाये कुछ पता नहीं ।

वह पूरी तसल्ली करना चाहती थी , वह चाहती थी कि उसे पूरी बात का पता लगे और उसका रास्ता साफ रहे , वह इश्क में कुछ भी कर गुजरने को तैयार थी ।  अपनी असफलता पर वह कसमसा कर राह गई ,खैर पता तो लगा कर ही रहूंगी  ।

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संध्या का समय है , अभी अंधेरे ने दस्तक नही दी थी , आसमान में हल्की लालिमा छाई थी , एक छोटी  नदी की बेलगाम मौजें पत्थरों  पर टक्करें मारती , एक अलग तरह का स्वर उतपन्न कर रही थी,दूर से कुछ पंछी उडकर अपने बसेरे की तरफ आते दिखाई पड़ रहे थे ,पास ही थोड़ी दूर पर एक सुखी पड़ी बावड़ी ,जो अब पथिक के लिए थोड़ी देर विश्राम की जगह बन गई थी ,मानो किसी का इंतजार कर रही हो । हल्की पुरवा  सांय सांय बह रही थी  ।

तभी दूर से एक घुड़ सवार  आता दिखाई पड़ता है , और बावड़ी के पास आकर रुक जाता है  ।

सुमेर सिंह कुछ देर इधर उधर देखता है ,फिर घोड़े से उतर कर इधर उधर टहलता है और फिर बावड़ी के पास पत्थर पर बैठ जाता है  ।


जारी है...............। तेरे इश्क़ में ( भाग 7)

                          भगवान सिंह रावत ( दिल्ली